- इस कविता को पढ़िए ‘दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात; एक . . .
इस कविता को पढ़िए दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात; एक परदा यह झीना नील छिपाये लिए प्रश्न बनाइए। (घ) कविता को उचित शीर्षक दीजिए।
- दुःख की पिछली रजनी बीच, - Brainly
दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात; एक परदा यह झीना नील, छिपाए है जिसमें सुख गात। जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ कविता की पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।
- दुःख की पिछली रजनी बीच पद्यांश की व्याख्या DUKHA KI PICHHALI RAJANI . . .
दुःख की पिछली रजनी बीच पद्यांश का संदर्भ प्रसंग व्याख्या काव्य सौंदर्य और
- (2) दुःख की पिछली रजनी बीत विकसता सुख का नवल प्रभात, एक परदा यह. . . | Filo
आजु गईं हुती भोर ही हौं, रसखानि रईं वहि नंद के भीनहिं। वाकी जियी जुग लाख करोर, जसोमति को सुख जात कहयो नहिं।। तेल लगाइ लगाइ कै अँजन, पाहैं बनाइ बनाइ डिठौनहिं। डारि हमेलनि हार निहारत वारत ब्यौं चुचकारत छौनहिं।।211 धरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी। खलत खात फिरें अँगना, पग पैजनी बाजति पीरी कणोटी।। वा छबि कों रसखानि बिलोकत, वारत काम
- Dukh Ki Pichali Rajni, Kamayani,SraddhaSarg 38 - Blogger
कवि ने इतिहास और पुराण में पुनरुत्थानवादी कवियों की भाँति सांस्कृतिक गौरव की खोज नहीं की , बल्कि पुरानी कथा में ‘ वस्तु ’ नवीनता लाने उसके माध्यम से युग की जटिल स्थितियों को परिभाषित करने का उपक्रम किया है इस काव्य का प्रकाशन सन् 1962 में हुआ है
- दुख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख. . . - बस यूँ ही दिल मचल गया | Facebook
दुख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात एक परदा यह झीना नील, छिपाये है जिसमें सुखगात #कामायनी
- 10 क उत्तर दीजिए। दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात, एक . . .
(क) यह पद्यांश कृष्णा चैतन्य के शब्दों से लिया गया है, जिनका अर्थ है: दुःख की पिछली रात मध्यभाग, विकसित सुख की नयी प्रात, यहाँ पर पर्दे में छिपा है नीला अकाश, जिसमें है सुख का सच्चा आदान-प्रदान। तुम इसे अभिशाप समझते हो, यह जगत की ज्वालाओं का मूल, यह ईश्वर का एक रहस्यमय वरदान, कभी इसे मत भूलना।
- 302 (DU) 6 4. दिये गये . . . - Sarthaks eConnect
दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों दीजिए : द्ख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात एक परदा यह झीना नील छिपाये हैं जिसमें सुखगात जिसे तुम समझे हो अभिशाप जगत की ज्वालाओं का मूल ईश का वह रहस्य वरदान कभी मत जाओ इसको भूल । i) कवि और कविता का नाम लिखिए । ii) श्रद्धा किसके हताश मन को प्रेरणा दे रही है - Sarthaks eConnect | Largest On
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